उच्च मुद्रास्फीति और ब्याज दरों में बढ़ोतरी के कारण एवं समग्र प्रभाव

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दुनिया भर के शेयर बाजार निवेशकों को संयुक्त राज्य अमेरिका के फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी की रिपोर्ट ने हिला दिया है। कई लोगों ने अनुमान लगाया है, कि यूएस फेड द्वारा इस तरह की कार्रवाई अन्य देशों को मुद्रास्फीति नियंत्रण में रखने के लिए कठोर रुख अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेगी। हालाँकि, इस तरह के कदम से अंततः वैश्विक शेयर बाजार में गिरावट आ सकती है!

इस लेख में, हम ब्याज दरों में बढ़ोतरी के पीछे के घटको के बारे में जानेंगे और पता लगाएंगे कि क्या हमें वास्तव में इस फैसले से डरने की जरूरत है।

कहानी

सबसे पहले, आइए हम व्यापार चक्र की बुनियादी व्यापक आर्थिक संकल्पना को समझें। व्यवसाय और अर्थव्यवस्था समग्र रूप से एक सीधी रेखा में नहीं चलते। अर्थव्यवस्था में विस्तार और संकुचन होते रहते हैं (जैसे लहरो के उतार-चढ़ाव)। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था का विस्तार होता है, इन तरंगों की दीर्घकालिक प्रवृत्ति हमेशा सकारात्मक पूर्वाग्रह में होती है।

कोविड -19 महामारी के कारण आर्थिक दबाव के परिणामस्वरूप, हर देश की सरकार और केंद्रीय बैंकों के लिए अपनी अर्थव्यवस्था का विस्तार करना आवश्यक था। इसलिए, उन्होंने अविश्वसनीय प्रोत्साहन पैकेज और कम रेपो दरों के साथ अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया। रेपो दर वह ब्याज दर है, जिस पर केंद्रीय बैंक (जैसे भारतीय रिजर्व बैंक और यूएस के फेडरल रिजर्व) वाणिज्यिक बैंकों को उधार देते हैं।

व्यवसाय और आम आदमी, पैकेज का लाभ उठाने और आसानी से ऋण प्राप्त करने में सक्षम थे। जैसे-जैसे वैश्विक अर्थव्यवस्था कोविड के उच्च टीकाकरण दरों के साथ पुनर्जीवित होने लगी, देशों के सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product – GDP) में तेजी आई और बेरोजगारी में भारी कमी आई। नागरिकों ने उत्पादों और सेवाओं पर अधिक खर्च करना शुरू कर दिया, क्योंकि अब उनकी जेब में अधिक नकदी थी। हालांकि, आपूर्तिकर्ता उच्च मांग को पूरा नहीं कर सके! जैसे ही मांग पक्ष आसमान छू गया, आपूर्ति पक्ष टूट गया। आपूर्ति श्रृंखला मौजूदा मांग को पूरा करने में असमर्थ थी, जिससे मुद्रास्फीति होती है। (मुद्रास्फीति के बारे में अधिक पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)।

ऊपर दिखाए गए ग्राफ में आप अमेरिका में महंगाई का असर साफ -साफ देख सकते हैं। यह अब 40 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। दिसंबर 2021 में महंगाई दर पिछले साल की तुलना में 7% थी। आइए अन्य देशों की मुद्रास्फीति दरों पर एक नजर डालते हैं।

अब हम विस्तार चरण के अंत में हैं, और अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है। दूसरी ओर, जैसे-जैसे मुद्रास्फीति फैलनी शुरू हुई, शेयर बाजारों में कई गुना तेजी आई है और आज बाजार अपने उच्च मूल्यांकन पर हैं। अगर महंगाई पर काबू नहीं पाया गया, तो अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाएगी।

सरकारें इस मुद्दे को कैसे हल करती हैं? यहीं से केंद्रीय बैंकों की मौद्रिक शक्ति सामने आती है। फेडरल रिजर्व अब उन ब्याज दरों में वृद्धि कर सकता है, जो एक बार संकुचन अवधि में कम हो गई थीं। आगे बढ़ते हुए उद्योगों और व्यक्तियों के लिए ऋण प्राप्त करना शायद कठिन होगा। इस कदम से अर्थव्यवस्था में बहने वाले पैसे में गिरावट आएगी। अंतत: महंगाई कम होगी।

शेयर बाजारों पर प्रभाव

सभी निवेशक उन शेयरों को महत्व देते हैं, जो उन्हें भविष्य में अच्छे रिटर्न दे सकते है। उदाहरण के लिए, कई लोगों ने नायका, पेटीएम और ज़ोमैटो जैसी अत्यधिक मूल्यवान स्टार्टअप कंपनियों में इस इरादे से निवेश किया है, कि वे अपने संबंधित क्षेत्रों में अच्छे हैं। इसके अलावा, ये फर्म भविष्य में बेहतर बिक्री और कमाई करेगी यह आशा है।

ब्याज दरों में वृद्धि से लोगों में लिक्विडिटी कम होगी। वे कम खर्च करना शुरू कर देंगे और अपने खर्चों में कटौती करेंगे, जो अंततः कंपनियों की बिक्री को प्रभावित करता है। जाहिर है, कंपनियों का मूल्यांकन सवालों के घेरे में आ जाएगा और निवेशकों की इन शेयरों पर मंदी की भावना होगी। इस प्रकार, भविष्य की आय के साथ मूल्यवान किसी भी क्षेत्र में ब्याज दरों में बढ़ोतरी होने पर उच्च जोखिम होता है।

उपरोक्त पांच साल के चार्ट में, हम देख सकते हैं कि अतीत में प्रत्येक सेक्टोरल इंडेक्स कैसे आगे बढ़ा है। साफ है कि, निफ्टी 50 के मुकाबले आईटी कंपनियों में कहीं ज्यादा तेजी आई है।

निष्कर्ष

यदि नियंत्रित नहीं किया गया, तो मुद्रास्फीति किसी राष्ट्र की संपत्ति को नष्ट कर सकती है। दरअसल, अमेरिकी फेडरल रिजर्व की कार्रवाई से अर्थव्यवस्था में अल्पकालिक धन की कमी पैदा होगी। हालांकि, यह लंबी अवधि में अधिक विस्तार को बढ़ावा देगा।

यूएस फेडरल रिजर्व की दिसंबर नीति बैठक के मिनट्स जारी होने के बाद (फेड मिनट्स के बारे में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें), यूएस का NASDAQ इंडेक्स, जिसमें टेक शेयरों का वेटेज अधिक है, 7% से अधिक गिर गया। हालांकि, भारतीय बाजारों में उतनी गिरावट नहीं आई।

आगे बढ़ते हुए, हम भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ऐसी ही कार्रवाइयों को देख पाएंगे जो भारतीय बाजारों को हिला सकती हैं। अत्यधिक उपभोक्ता-केंद्रित कंपनियों और तकनीकी फर्मों के स्टॉक अल्पकालिक मंदी के चरण में आ सकते हैं, क्योंकि उनकी बिक्री/आय अनुमान (जिससे उनका वर्तमान मूल्यांकन जुड़ा हुआ है) से शायद गिर जाएगा।

ब्याज दरों में बढ़ोतरी पर आपकी क्या राय है? क्या आपको लगता है, कि यह हमारे बाजारों को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा? हमें मार्केटफीड ऐप के कमेंट सेक्शन में बताएं।

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